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हाई स्पीड रेल के साथ भारत परिवहन क्रांति 2.0 के लिए तैयार

हाई स्पीड रेल इस देश के लिए गेम चेंजर साबित होगी और जब इस परियोजना को शुरू किया जाएगा, तो हम परिवहन क्रांति 2.0 के साक्षी बनेंगे

नेशनल हाई-स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड(एनएचएसआरसीएल) की स्थापना गुजरात सरकार और महाराष्ट्र सरकार, रेल मंत्रालयों के माध्यम से भारत सरकार की भागीदारी के साथ एक विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) के रूप में की गई है। इस एसपीवी को स्थापित करने का मुख्य उद्देश्य मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल परियोजना को तुरंत अमल में लाना है। इस विशेष परियोजना की प्रमाणिकता यह है कि हम इस परियोजना के क्रियान्‍वयन के साथ ही मानक भी स्थापित कर रहे हैं, क्‍योंकि हाई स्पीड रेल का अस्तित्व भारत में पहले कभी रहा ही नहीं। हमें अपने जापानी भागीदारों के साथ मिलकर हाई स्पीड रेल के सभी प्रकार के मानकों को विकसित करना है।

इस हाई स्पीड रेल के निर्माण के साथ ही, भारत 15 देशों के उस एलीट क्लब में शामिल हो जायेगा, जिनके पहुँच में यह परिष्कृत तकनीक है। यह परियोजना प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के साथ-साथ राष्ट्र की सेवा के लिए एक विश्व स्तरीय अत्याधुनिक तकनीक लाएगी।

द शिंकानसेन प्रौद्योगिकी

शिंकानसेन का शाब्दिक अर्थ 'नई ट्रंक लाइन' है। जापान ने 1964 में टोक्यो और शिन-ओसाका के बीच पहली शिंकानसेन ट्रेन (जिसे आमतौर पर बुलेट ट्रेन के रूप में जाना जाता है) की शुरुआत की थी। उस समय इन ट्रेनों की परिचालन गति 210 किमी प्रति घंटा थी। जापान ने इस प्रौद्योगिकी में निरंतर सुधार किया और वर्तमान में शिंकानसेन ट्रेनें 320 किमी प्रति घंटे की गति से चलती हैं। पिछले चव्‍वन वर्षों में शून्‍य यात्री संबंधी विपत्ति रिकॉर्ड के प्रमाणित सुरक्षा रिकार्ड के साथ शिंकानसेन प्रौद्योगिकी सबसे विश्वसनीय है।

निकट भविष्य में भारत में मुंबई और अहमदाबाद के बीच इसी तरह की शिंकानसेन ट्रेनें (E5 श्रृंखला) चलेंगी। इन ट्रेनों की परिचालन गति 320 किमी प्रति घंटा होगी और इन्हें सीमित स्टॉप सेवा पर 2 घंटे 7 मिनट में 508 किमी की दूरी तय करनी होगी

सर्वेक्षण

इस परिमाण के साथ सख्त समय सीमाओं वाली इस परियोजना के लिए, सर्वेक्षण और डिजाइन एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि जब तक सर्वेक्षण और डिजाइन पूरा ना हो जाए तब तक निर्माण कार्य शुरू नहीं हो सकता है। यह 508 किमी में फैली हुई एक ग्रीनफ़ील्ड योजना है और 200 से अधिक नदियों के ऊपर से गुज़र रही है। यह भू-भाग घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों, और हरे-भरे क्षेत्रों के साथ-साथ चुनौतीपूर्ण घाट और खाड़ी क्षेत्रों से परस्पर जुड़ा हुआ है। कुल स्टेशन और डीजीपीएस सर्वेक्षण की पारंपरिक पद्धतियों का उपयोग करके इस तरह के लंबे ग्रीनफील्ड मार्ग का सर्वेक्षण करना आसान काम नहीं है।

भारत के रेलवे प्रोजेक्ट में पहली बार हमने एरियल LIDAR (लाइट डिटेक्शन एंड रेंजिंग) सर्वे किया है, ना केवल भूमिगत सर्वेक्षण के लिए बल्कि इसके अनगिनत लाभों की वजह से हेलिकॉप्टर से जुड़ी लेज़र तकनीक का उपयोग किया जाता है। पारंपरिक सर्वेक्षण के लिए 10-12 महीनों के सामान्य समय की तुलना में LiDAR तकनीक का उपयोग करके 508 किमी के कॉरिडोर के सर्वेक्षण को पूरा करने के साथ-साथ 15 दिनों में ड्राफ्ट रिपोर्ट्स भी तैयार की जा सकती है।

ठाणे क्रीक क्षेत्र में निर्मित होने वाली भारत की पहली अंडरसी सुरंग के लिए स्थैतिक अपवर्तन तकनीक (एसआरटी) सर्वेक्षण किया गया था। जिन भूमिगत क्षेत्रों से मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल गुजरेगी उन क्षेत्रों का मूल्यांकन करने के लिए यह भू-तकनीकी जांचों का हिस्सा थी।

संरेखण

मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल (एमएएचएसआर) में मुंबई (बीकेसी) और साबरमती के बीच 12 स्टेशन शामिल होंगे। एमएएचएसआर के सभी स्टेशन (मुंबई को छोड़कर) वायाडक्ट पर इसके 90% से अधिक ट्रैक के साथ एलीवेटिड होंगे। ठाणे क्रीक में एमएएचएसआर भारत की पहली अंडरसी सुरंग को भी शामिल करेगा। रखरखाव के उद्देश्य से साबरमती, सूरत और ठाणे में तीन डिपो होंगे।

1. दूरी

  • मुंबई से अहमदाबाद होते हुए साबरमती तक - लगभग 508 किमी
  • महाराष्ट्र -155.76 किमी (उपनगरीय मुम्बई में 7.04 किमी, ठाणे जिले में 39.66 किमी और पालगढ़ जिले में 109.06 किमी)
  • केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली - 4.3 किमी
  • गुजरात - 348.04 किमी
     

2. यात्रा

  • परिचालन गति - 320 किमी/प्रतिघंटा।
  • मुम्बई से अहमदाबाद तक का यात्रा समय - 1 घंटा 58 मिनट। (सूरत और वड़ोदरा में सीमित स्टॉप्स) -2 घंटा 57 मिनट। (सभी स्टॉप्स)
  • स्टेशनों की संख्या-12
  • महाराष्ट्र में स्टेशन - मुंबई, ठाणे, विरार, बोईसर (4 सं.)
  • गुजरात में स्टेशन - वापी, बिलमोरा, सूरत, भरूच, वड़ोदरा, आनंद, अहमदाबाद, साबरमती (8 सं.)


3. विशेषताएं

  •  बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) से सबसे लंबी सुरंग 21 किमी लंबी, भू-स्तर से लगभग 40 मीटर नीचे है।
  •  ठाणे क्रीक (अंडर सी) क्षेत्र का सेक्शन भी सुरंग में लगभग 40 मीटर नीचे भूमिगत होगा। 
  •  (महाराष्ट्र और गुजरात दोनों में) 460 किमी ऊंचा [वायाडक्ट पर जमीन से लगभग 10-15 मीटर ऊपर] होगा  
  •  वड़ोदरा, अहमदाबाद और साबरमती स्टेशंस मौजूदा भारतीय रेलवे प्लेटफार्म होंगे। 
  •  वैतरना नदी के ऊपर 1950 मीटर का सबसे लम्बा ब्रिज
सामुदायिक सम्मिलन

प्रभावित समुदायों को साथ लेकर चलते हुए एनएचएसआरसीएल उच्च गति विकास का सच्चा प्रवर्तक होगा। एनएचएसआरसीएल भूमि का न्यूनतम अधिग्रहण सुनिश्चित कर रहा है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि अगर आवश्यक हो तो न्यूनतम संभव अव्यवस्था के साथ भूस्वामियों को पर्याप्त मुआवज़ा दिया जाए और यदि आवश्‍यक हो तो उनका पुनर्वास किया जाए। एनएचएसआरसीएल मुंबई-अहमदाबाद कॉरिडोर के साथ लगे समुदायों के साथ उनकी अस्पतालों, स्कूलों और अन्य बुनियादी ढाँचे जैसी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने का काम कर रहा है।

सुंदरता को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किए गए स्टेशंस

सभी 12 स्टेशंस और साबरमती हब को स्थानीय थीम पर डिज़ाइन किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, वड़ोदरा स्टेशन में ‘वड़’ (बरगद का पेड़) थीम होगी, जबकि सूरत स्टेशन हीरों पर आधारित होगा। सौर ऊर्जा और प्राकृतिक वायु-संचालन जैसे प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग बढ़ाने के लिए स्टेशंस पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों पर आधारित होंगे। इससे न केवल लागत कम होगी, बल्कि संचालन के चरण में पर्यावरण के अनुकूल तकनीकों को बढ़ावा भी मिलेगा।

इमेज: मुंबई अहमदाबाद हाई स्पीड रेल वापी स्टेशन

इमेज: साबरमती टर्मिनल की ग्राफि़क प्रस्‍तुति, जो साबरमती, गुजरात में बनाने की योजना है।

परियोजना के लिए कार्यबल तैयार करना

कई साइटों पर सभी निर्माण गतिविधियों की डिज़ाइनिंग, योजना और प्रबंधन के अलावा, एनएचएसआरसीएल भविष्य के लिए एक कार्यबल भी तैयार कर रहा है। एनएचएसआरसीएल का लक्ष्य न केवल शिंकानसेन प्रौद्योगिकी को भारत में लाना है, बल्कि मुंबई - अहमदाबाद हाई स्पीड रेल (एमएएचएसआर) परियोजना को जापानी सुरक्षा, समय की पाबंदी और यात्री सुविधा की संस्कृति प्रदान करना भी है।

कौशल विकास के लिए सही मात्रा में अपेक्षित जानकारी व ज्ञान हासिल करने और संगठन में सभी स्तरों पर सुरक्षा और समय की पाबंदी की सही मानसिकता लाने के लिए एनएचएसआरसीएल कर्मचारियों के नियमित बैचों को जापान दौरे पर भेजने की योजना है।
वड़ोदरा में प्रशिक्षण संस्थान का काम पहले ही शुरू हो चुका है और दिसंबर 2020 तक पूरा हो जाएगा।

परिवहन के पर्यावरण के अनुकूल साधन

हवाई और कार यात्रा की तुलना में हाई स्पीड रेल परिवहन के सबसे अच्छे साधनों (नकारात्मक बाहरी कारकों के संदर्भ में) में आती है । एचएसआर अधिक कुशल है, पर्यावरण के अनुकूल है, कम ध्वनि और वायु प्रदूषण पैदा करती है और समान यात्री क्षमता के बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए अपेक्षाकृत कम भूमि का उपयोग करती है।

एनएचएसआरसीएल यह सुनिश्चित कर रहा है कि निर्माण स्थलों के अधिकतम पेड़ों को पास के स्थान पर प्रत्यारोपित किया जाए। इनमें से 80% पेड़ों के इस अभ्यास से बच जाने की उम्मीद है। 

इमेज: गुजरात में साबरमती डिपो निर्माण स्थल पर पेड़ों को स्थानांतरित करने वाला एक कुदाल ट्रक

चुनौतियाँ

7 किमी लंबी अंडरसी सुरंग, जो मैंग्रोव क्षेत्रों और मुंबई क्षेत्र में एक फ्लेमिंगो अभयारण्य के नीचे से होकर गुज़रेगी, का निर्माण सबसे बड़ी तकनीकी चुनौतियों में से एक है। अगर हमने एलिवेटेड कॉरिडोर चुना होता तो इससे मैंग्रोव काटने पड़ते और पारिस्थितिक संतुलन बिगड़ जाता।

एक अन्य चुनौती वड़ोदरा, अहमदाबाद और साबरमती में भारतीय रेलवे के पहले से मौज़ूद स्‍टेशन वाले स्‍थानों पर हाई-स्‍पीड स्‍टेशंस का निर्माण कार्य करना है। बुलेट ट्रेन स्टेशंस को भारतीय रेलवे के इन तीन स्टेशंस से जोड़ने की योजना है। भारी संख्या में रेलगाड़ियाँ और यात्रियों वाले इन भीड़भाड़ वाले रेलवे स्टेशंस पर 14-15 मीटर की ऊँचाई पर हाई-स्पीड स्टेशंस और प्लेटफॉर्म्स का निर्माण कार्य करना एक बड़ी चुनौती है।

आमतौर पर, हाई-स्‍पीड अलाइन्‍मेंट ज़मीन से 11-12 मीटर की ऊंचाई पर होते हैं। किसी मेट्रो या रोड ओवर ब्रिज होने पर हाई-स्पीड स्टेशन की ऊंचाई को और बढ़ाया जाएगा। साबरमती में, प्रस्तावित स्टेशन के करीब एक रोड ओवर ब्रिज है और इधर मेट्रो भी आ रही है। इसलिए, साबरमती हाई-स्पीड स्टेशन की ऊंचाई 20-21 मीटर होगी। 

वड़ोदरा में, दोनों तरफ़ घनी बस्ती होने के कारण कार्य करने के लिए सीमित स्‍थान उपलब्‍ध है। यही स्थिति अहमदाबाद और साबरमती की भी है, जहाँ के लिए भारतीय रेलवे के पास विस्तार योजनाएँ हैं और हमें यह ध्यान में रखते हुए हाई-स्पीड संरेखण की योजना बनानी होगी, जिससे उक्त स्टेशनों की योजना में बाधा न आए।
 
मुंबई में बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) में मीठी नदी के करीब एक भूमिगत स्टेशन होगा और हमें सुरंग के लिए खुदाई करने के लिए नदी को पार करना पड़ेगा। इसी प्रकार, अंडरसी सुरंग का विशाल व्‍यास लगभग 12.5 मीटर का होगा, जिसमें एक ही ट्यूब में दो ट्रैक होंगे जबकि मेट्रो में 6.5 मीटर व्यास की सुरंग और एक ट्यूब में एक ट्रैक होता है।

क्योंकि, अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड ट्रेन एक बहुत बड़ी परियोजना है, इसके लिए विशाल जनशक्ति की आवश्यकता होती है और उन्हें प्रशिक्षित करना निश्चित रूप से एक चुनौती है। हाई-स्पीड शिंकानसेन प्रणाली एक पूरी तरह से नई प्रौद्योगिकी है और हमें अब भी इसे पूरी तरह से समझने की आवश्‍यकता है। तकनीकी ज्ञान प्राप्त करना और कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमें सुप्रशिक्षित मानव संसाधन की आवश्यकता है। कुल 300 अधिकारियों को जापान में प्रशिक्षित करने की योजना है। 

जापानियों द्वारा लगाए गए अनुमान के अनुसार, इस परियोजना में विभिन्‍न श्रेणियों, जैसे लोकोमोटिव ड्राइवर, गार्ड, स्टेशन कर्मचारी, ऑपरेशन नियंत्रण केंद्र के कर्मचारी, रखरखाव कर्मी, सिग्नल की देखरेख करने वाले और विद्युत कर्मचारी, के अंतर्गत लगभग 4,000 कर्मियों की आवश्यकता होती है। गाड़ियों की आवधिक मरम्मत के लिए साबरमती में एक बड़ा डिपो होगा, जबकि साप्ताहिक और मासिक रखरखाव के लिए ठाणे में एक छोटा डिपो बनाया जाएगा। परियोजना के निर्माण के लिए लगभग 20,000-25,000 व्यक्तियों की आवश्यकता होगी

इमेज:  वड़ोदरा, गुजरात में एक हाई स्पीड रेल निर्माण स्थल का निरीक्षण करते हुए प्रबन्ध निदेशक एनएचएसआरसीएल श्री अचल खरे

प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और ‘मेक इन इंडिया’ पहल

‘प्रौद्योगिकी हस्तांतरण’ और ‘मेक इन इंडिया’ एमएएचएसआर परियोजना के अभिन्न उद्देश्य हैं। परियोजना के इन उद्देश्यों को पूरा करने की कार्रवाई करने के लिए औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग (डीआईपीपी) और जापानी विदेश व्यापार संगठन (जेइटीआरओ) से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा रहा है। उदाहरण के लिए, चार उप-समूहों यानि विज़ट्रैक; सिविल; इलेक्ट्रिकल तथा S&T; और रोलिंग स्टॉक को परियोजना के लिए उन आवश्यक संभावित वस्तुओं और उप-प्रणालियों की पहचान करने और उन पर चर्चा करने के लिए भारतीय उद्योग, जापानी उद्योग, डीआईपीपी, एनएचएसआरसीएल और जेइटीआरओ के प्रतिनिधियों के साथ गठित किया गया है जो "मेक इन इंडिया" कार्यक्रम के अंतर्गत आ सकते हैं।
भारतीय और जापानी, दोनों उद्योगों के प्रतिनिधियों के बीच कई सेक्टर की विशिष्ट बैठकों, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, कार्यशालाओं आदि की व्यापक चर्चाओं (दिल्ली के साथ-साथ टोक्यो में भी आयोजित) के बाद, विभिन्न विषयों को ‘मेक इन इंडिया’ के अंतर्गत रखने के लिए उनकी पहचान की गई है, और बोली दस्तावेजों में इन विषयों को उपयुक्त रूप से शामिल करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। भारतीय ठेकदारों के लिए सिविल निर्माण हेतु जापानी फर्मों के साथ, बिना किसी शर्त, एक संयुक्त उपक्रम बनाने के लिए उनके लिए परियोजना की 508 किमी की लंबाई में से, 450 किमी लम्‍बाई का एक स्ट्रेच मुक्‍त रखा गया है।

इस परियोजना के सिविल निर्माण की अनुमानित लागत कुल परियोजना लागत का लगभग 50-60% है। जब यह विशेषज्ञता भारत के भीतर ही उपलब्ध होगी, तब काम केवल भारतीय कंपनियों द्वारा किया जाएगा।

वड़ोदरा, अहमदाबाद और साबरमती में, जहाँ मौजूदा स्टेशनों के ऊपर हाई-स्पीड स्टेशन बनाए जायेंगे, हम जापान से एक प्रमुख ठेकेदार को नियुक्त करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे वह उप-पैकेजों की डिजाइन और योजना तैयार कर उन्हें भारतीय कंपनियों को सौंप सके। यहाँ भी, तकनीकी कौशल शुरुआत में जापान से आएगा और फिर भारतीय कंपनियां धीरे-धीरे सीखेंगी।

परियोजना के लाभ

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस और हैम्बर्ग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, नई हाई-स्पीड लाइन से जुड़े शहरों ने, उन पड़ोसी शहरों की तुलना में जो उस मार्ग पर नहीं हैं, अपने जीडीपी में कम से कम 2.7% की वृद्धि देखी है। उनके अध्ययन में यह भी पाया गया कि हाई-स्पीड रेल के माध्यम से बाज़ार पहुँच में बढ़ोत्तरी का पारस्परिक संबंध जीडीपी में वृद्धि के साथ है- बाजार की पहुंच में हर 1% की वृद्धि से, जीडीपी में 0.25% की वृद्धि होती है।

हवाई और कार यात्रा की तुलना में हाई स्पीड रेल परिवहन के सबसे अच्छे साधनों (नकारात्मक बाहरी कारकों के संदर्भ में) में आती है।एचएसआर अधिक कुशल है, पर्यावरण के अनुकूल है, कम ध्वनि और वायु प्रदूषण पैदा करती है और समान यात्री क्षमता के बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिए अपेक्षाकृत कम भूमि का उपयोग करती है। यह भारत जैसे युवा राष्ट्र के लिए अधिक रोजगार सृजित करने में भी मदद करेगी। यह उम्मीद की जाती है कि हाई स्पीड रेल, मुंबई जैसे उच्च जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में आने वालों या काम करने वालों के लिए किफायती आवास समाधान प्रदान करेगी। यात्रियों के समय में भी इससे रोज़ाना काफी बचत होगी।

अध्ययनों से पता चला है कि हाई स्पीड रेल के शुरू होने से, पर्यटन स्‍थलों पर जाने और उच्‍च-स्‍तरीय शिक्षा तथा चिकित्सा सेवाओं तक पहुँचने में यात्रा का समय न्‍यूनतम हो जाने से क्षेत्र में पर्यटन, चिकित्सा और शिक्षा क्षेत्रों को बढ़ावा मिलता है। एचएसआर को इस क्षेत्र के लिए एक सच्चा विकास प्रवर्तक माना जाता है।

आईआईएम अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित ‘डेडीकेटिड हाई स्‍पीड रेल नेटवर्क इन इंडिया: इश्‍यूज़ इन डेवलपमेंट’ शीर्षक से प्रो. जी. रघुराम और श्री प्रशांत डी. उदय कुमार द्वारा किए गए एक अध्ययन ने हाइ-स्पीड रेल कॉरिडोर की आवश्यकता पर निम्‍नानुसार प्रकाश डाला है:
एचएसआर के कई सकारात्मक लाभ और बाहरी पहलू हैं जो भारत के संपूर्ण आकांक्षात्मक विकास में उपयोगी होंगे। इन बाहरी कारकों में अन्य डोमेन में प्रौद्योगिकी का प्रसार, आर्थिक विकास, संपर्क के बदले हुए मायने और अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे के कारण राष्ट्रीय गौरव शामिल हैं। ऐसे संदर्भ में, शुरू करना और सीखना एक अच्छा विचार है।
पहले मार्ग के लिए मुंबई-अहमदाबाद मार्ग एक अच्छा विकल्प है, क्योंकि यह इनके बीच 500 किमी के कॉरिडोर में महत्वपूर्ण आर्थिक विकास के साथ भारत के पहले और सातवें सबसे अधिक आबादी वाले शहरों को जोड़ता है”
तसवीरों का स्रोत: रेलवे का अंतराष्ट्रीय संघ www.uic.org.