भारत की पहली बुलेट ट्रेन परियोजना - मुंबई-अहमदाबाद हाई स्पीड रेल कॉरिडोर, 508 किलोमीटर की दूरी को तय करते हुए पश्चिमी भारत में स्थित महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों के बीच कनेक्टिविटी को तीव्रता प्रदान करेगी।
महाराष्ट्र के बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स (बीकेसी) क्षेत्र से शुरू होकर, 320 कि.मी./घंटा की गति से चलने वाली यह हाई-स्पीड ट्रेन इंटरसिटी यात्रा में एक नया बदलाव लाएगी और मुंबई, वापी, सूरत, आणंद, वडोदरा और अहमदाबाद की अर्थव्यस्था को एकीकृत करेगी। 10 शहरों; ठाणे, विरार, बोईसर, वापी, बिलिमोरा, सूरत, भरूच, वडोदरा, आणंद व अहमदाबाद में रुकने के बाद इस ट्रेन का अंतिम ठहराव साबरमती होगा।
सीमित स्टॅाप के साथ (सूरत, वडोदरा और अहमदाबाद) पूरी यात्रा लगभग 2 घंटे 7 मिनट में तय की जाएगी, जो ट्रेन या सड़क यात्रा में लगने वाले समय की तुलना में काफी कम होगी।
इस परियोजना को क्रियान्वित करने वाली संस्था नेशनल हाई-स्पीड रेल कॉर्पोरेशन लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) को 12 फरवरी 2016 में कंपनी अधिनियम, 2013 के अंतर्गत भारत में हाई स्पीड रेल कॉरिडोर के वित्तपोषण, निर्माण, रखरखाव एवं प्रबंधन के उद्देश्य से निगमित किया गया था। कंपनी को केंद्र सरकार द्वारा रेल मंत्रालय और दो राज्य सरकारों यानी गुजरात सरकार तथा महाराष्ट्र सरकार के माध्यम से इक्विटी भागीदारी के साथ संयुक्त क्षेत्र में ‘स्पेशल पर्पज व्हीकल’ के रूप में प्रतिरूपित किया गया है।
फिजिबिलिटी रिपोर्ट के अनुसार, इस परियोजना की अनुमानित लागत (कर हटाकर) 1,08,000 करोड़ रुपये (17 बिलियन अमेरिकी डॉलर) है और इसे जापान इंटरनेशनल कॉर्पोरेशन एजेंसी (JICA) से आधिकारिक विकास सहायता (ओडीए) ऋण के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है।
इसकी वित्तपोषण की पूरी संरचना में, परियोजना की कुल लागत का 81% जापान सरकार द्वारा जे.आई.सी.ए. (JICA) के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा। परियोजना की शेष लागत भारत सरकार द्वारा वित्त पोषित की जाएगी। ‘स्पेशल पर्पज व्हीकल’ की इक्विटी संरचना के अनुसार, भारत सरकार की हिस्सेदारी रेल मंत्रालय के माध्यम से 50% है, और महाराष्ट्र सरकार और गुजरात सरकार की हिस्सेदारी 25% -25% है।
एमएएचएसआर हेतु दिए जा रहे ऋण की शर्तें रियायती नियमों पर आधारित हैं। ऋण की अवधि 0.1% ब्याज दर पर 50 वर्ष की है और इसमें 15 वर्ष की स्थगन अवधि भी है। इस प्रकार, इस ऋण को 35 वर्षों में चुकाया जाना है।
इस परियोजना के लिए 100% भूमि अधिग्रहित की जा चुकी है। 1390 हेक्टेयर में से 430 हेक्टेयर महाराष्ट्र में है और 960 हेक्टेयर गुजरात तथा केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली में है।
लगभग 90% एलाइनमेंट एलिवेटेड है और इसका निर्माण मुख्यतः फुल स्पैन लॅान्चिंग मेथड FSLM का उपयोग करके किया जा रहा है। देश में पहली बार निर्माण की इस खास विधि का उपयोग किया जा रहा है। भारत दुनिया के उन कुछ देशों में से एक है जो इस तकनीक का उपयोग करते हुए इसमें विशेषज्ञता कर रहा है।
वायाडक्ट के निर्माण हेतु उपयोग की जाने वाली FSLM तकनीक कन्वेंसनल सेगमेंटल निर्माण तकनीक की तुलना में 10 गुना तेज होती है।
राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों, सिंचाई नहरों, नदी और रेलवे पटरियों पर बने इस कॉरिडोर पर 60 मीटर और 130 मीटर के बीच के स्पैन के 28 स्टील पुलों को बनाने की योजना है।
इसके अलावा, मार्ग पर 24 नदी पुलों का निर्माण किया जा रहा है, जिनमें से 20 पुल गुजरात में तथा 4 पुल महाराष्ट्र में हैं।
एमएएचएसआर कॉरिडोर पर 8 पर्वतीय सुरंगें होंगी, जिनका निर्माण न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (NATM) का उपयोग करके किया जाएगा। इनमें से सात सुरंगें महाराष्ट्र के पालघर जिले में हैं, जबकि एक गुजरात के वलसाड जिले में है।
संचालन के दौरान उत्पन्न होने वाले शोर को कम करने के लिए वायाडक्ट के दोनों ओर नॉइस बैरियर्स लगाए जा रहे हैं।
इस एलाइनमेंट में 21 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा है, जिसमें ठाणे क्रीक के नीचे भारत की पहली 7 किलोमीटर लंबी समुद्र के नीचे बनने वाली सुरंग भी शामिल है। पूरे 21 किलोमीटर हिस्से का निर्माण दो तकनिकों के संयोजन का उपयोग करके किया जाएगा - सुरंग के 5 किलोमीटर हिस्से को बनाने के लिए न्यू ऑस्ट्रियन टनलिंग मेथड (NATM) और शेष 16 किलोमीटर को बनाने के लिए टनल बोरिंग मशीन (TBM) का इस्तेमाल किया जाएगा।
13.1 मीटर व्यास की एक सुरंग में दोनों पटरियों का निर्माण किया जाएगा। इस परियोजना में 13.6 मीटर व्यास के कटर हेड का उपयोग किया जा रहा है जो भारत में किसी भी रेलवे परियोजना हेतु सबसे बड़ा है।
इस कॉरिडोर पर स्थित 12 स्टेशनों में से प्रत्येक का डिज़ाइन उस शहर की विचारधारा को दर्शाएगा जिसमें यह स्थित है। इससे स्थानीय लोगों के साथ जुड़ाव होगा और हाई-स्पीड रेल प्रणाली के स्वामित्व की भावना को बढ़ावा मिलेगा। स्टेशनों के अगले हिस्से को समकालीन वास्तुशिल्प और अत्याधुनिक मार्डन फिनिश के साथ डिज़ाइन किया जा रहा है।
सुगम यात्रा के लिए, एलाइनमेंट पर स्थित स्टेशनों को मेट्रो, बसों, टैक्सियों और ऑटो जैसे अन्य साधनों के साथ एकीकरण के ज़रिए परिवहन केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा ताकि स्टेशन से और स्टेशन तक बेहतर, तेज़ और सुविधाजनक कनेक्टिविटी उपलब्ध हो सके। इस तरह के इंटरफेस से यात्रा का समय कम होगा, पहुँच बढ़ेगी और सार्वजनिक परिवहन के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा, जिससे हमारे शहरों में भीड़भाड़ और उत्सर्जन कम होगा।
यात्रियों की सुविधा तथा आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए, स्टेशन के आसपास के क्षेत्रों को ट्रांजिट ओरिएंटेड डेवलपमेंट (TOD) की नीतियों के अनुसार विकसित करने की योजना बनाई गई है। गुजरात में साबरमती व सूरत और महाराष्ट्र में विरार व ठाणे के स्टेशनों के आसपास के क्षेत्रों को भी स्टेशन क्षेत्र विकास योजनाओं को तैयार करने हेतु संबंधित राज्य प्राधिकरणों द्वारा चयनित किया गया है।
विभिन्न परिवहन साधनों के सुगम एकीकरण के लिए, गुजरात में साबरमती बुलेट ट्रेन स्टेशन से जोड़ने के लिए एक मल्टीमॉडल ट्रांजिट टर्मिनल का निर्माण किया गया है।
इस परियोजना के लिए जापानी शिंकानसेन ट्रैक तकनीकी पर आधारित गिट्टी रहित ट्रैक की जे-स्लैब ट्रैक प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है। यह पहली बार है, जब भारत में जे-स्लैब गिट्टी रहित ट्रैक प्रणाली का उपयोग किया जा रहा है।
ट्रैक बिछाने की पूरी प्रक्रिया अत्याधुनिक मशीनरी द्वारा की जा रही है, जिसे विशेष रूप से जापानी विनिर्देशों के अनुसार डिजाइन और निर्मित किया गया है। ट्रैक बनाने के लिए रेल फीडर कार, ट्रैक स्लैब लेइंग कार, सीएएम लेइंग कार और फ्लैश बट वेल्डिंग मशीन जैसी मशीनों का उपयोग किया जाएगा। शिंकानसेन ट्रैक निर्माण कार्यों की कार्यप्रणाली को समझने के लिए, जापानी विशेषज्ञों द्वारा संबंधित क्षेत्रों में विभिन्न विषयों पर भारतीय इंजीनियरों और तकनीशियनों के लिए प्रशिक्षण एवं प्रमाणन पाठ्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं।
इस कॉरिडोर की ट्रेनें अत्याधुनिक ट्रेनसेट हैं, जिनमें यात्रियों के आराम एवं सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा गया है। ट्रेनों को भारतीय पर्यावरण संबंधी परिस्थितियों के अनुसार डिजाइन किया जा रहा है। गुजरात में साबरमती व सूरत तथा महाराष्ट्र में ठाणे में तीन रोलिंग स्टॉक डिपो का निर्माण किया जा रहा हैं।
ऊर्जा संबंधी जरुरतों को पूरा करने के लिए, कॉरिडोर के साथ 12 ट्रैक्शन सबस्टेशन, 2 डिपो ट्रैक्शन सबस्टेशन और 16 वितरण सबस्टेशन बनाए जा रहे हैं।
ट्रेनों के सुरक्षित संचालन हेतु स्वचालित ट्रेन नियंत्रण तकनीक का उपयोग किया जाएगा।
बुलेट ट्रेन परियोजना से निर्माण एवं संचालन के दौरान रोजगार का सृजन होने से आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिल रहा है, साथ ही इससे स्टेशनों के आसपास के क्षेत्रों में निवेश भी आ रहा है और उनका नए तरीके से विकास हो रहा है। आवागमन के साधन और कनेक्टिविटी में सुधार करके, बुलेट ट्रेन से शहरों के बीच यात्रा का समय कम होगा, श्रमिक उत्पादकता बढ़ेगी तथा व्यावसायिक सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। इससे अहमदाबाद, मुंबई, सूरत और वडोदरा जैसे प्रमुख शहरी केंद्रों से अन्य दूर स्थित क्षेत्र भी जुड़ जाएंगे, जिससे क्षेत्रीय विकास में संतुलन आएगा। यह परियोजना विकसित भारत, सक्षम भारत एवं सशक्त भारत के सृजन के लिए भारत की अवसंरचना और कनेक्टिविटी में परिवर्तन लाने की पीएम गतिशक्ति पहल के अनुरूप है।